चालीसा चालीस चौपाइयों तथा दोहो का संग्रह होता है इसमें में हर चौपाइयों का अपना एक विशेष महत्व होता हैं। इसे परमेश्वर के रूप, चरित्र, उनके द्वारा किए गए अतुल्य कार्यों तथा इसको पढ़ने की 'फलश्रुति' का वर्णन होता है।
सनातन धर्म के अनुसार चालीसा का पाठ अपने इष्ट या भगवान की कृपा प्राप्त करने में अत्यंत फलदायी माना गया है।
चालीसा की संरचना सरल भाषा की गई जिससे जो व्यक्ति भगवान के प्रति समर्पित हैं लेकिन संस्कृत भजनों के अर्थ को पढ़ने या समझने में असमर्थ हैं वह भी इसे पढ़कर अपने भगवान या इष्ट की स्तुति कर सकें।
इसके पाठ के लिए किसी विशेष नियम की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए।
चालीसा की उत्पत्ति
हर एक ईश्वर यह भगवान की प्रार्थना के लिए उनके भक्तों द्वारा उनकी एक चालीसा की रचना की गई जिसमें सबसे पहली रचना श्री तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा के रूप में की थी तथा उसकी फल स्तुति का वर्णन भी किया।
लेखक श्री मिलन कुमार गंगोपाध्याय के अनुसार, चौपाइयों की संख्या चालीस चुनने के पीछे का कुछ यह कारण है
1. एक वेद-मंत्र है :
'इयम संवरं पर्वतेशु क्षियंतं चटवरिक्षं सहतः अन्वविन्दता औजमानां औथिं जगनां धनुशायम सज्जनः
स इन्द्रः',
अर्थात कि संवर नाम का राक्षस पहाड़ों से घिरी एक
ऊंची गुफा में निवास करता था। वह ऋषियों पर घोर अत्याचार करता था।
चालीस दिनों की कठोर संघर्ष के बाद भगवान इंद्र ने बाण मार के उसका वध कर दिया। इसलिए तुलसीदासजी ने चालीस
को शुभ अंक के रूप में लिया।
2. तुलसीदासजी अनुभूति हो गई थी कि कलियुग के लोगों के पास लंबे भजन पढ़ने के लिए पर्याप्त समय नहीं होगा इसलिए उन्होंने भगवान के प्रति समर्पित होने के लिए चालीस पंक्तियों के पाठ का निर्माण किया।
3. भजन हमारे चार पहलुओं को शुद्ध करने के लिए हैं: मानस, वध, चित्त और अहंकार। इनमें से प्रत्येक के दस पहलू हैं और इसलिए कुल चालीस पहलू है।
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