शिव स्तुति

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शिव स्तुति  

 

दोहा

श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय ।

कहत अयोध्यादास तुम, मोपर होहु सहाय ।।

 

कवित्त

नन्दी की सवारी नाग अंगीकार धारी नित,

 संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं ।

गले मुण्डमाला धारी, सिर सोहे जटाधारी

वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी हैं ।।

 

दानी देख भारी, शेष शारदा पुकारी ।

काशीपति मदनारी, कर त्रिशूल चक्रधारी हैं ।।

कला उजियारी, लख देव सो निहारी ।

यश गावें वेदचारी, सो हमारी रखवारी है ।।

 

शम्भु बेठे हैं विशाला, भंग पीवें सो निराला ।

नित रहे मतवाला, अहि अंग पै चढ़ाये हैं ।।

गले सोहे मुंडमाला, कर डमरू विशाला ।

अरु ओढ़े मृगछाला, भस्म अंग में लगाये हैं ।।

 

संग सुरभि सुतशाला, करें भक्त प्रतिपाला ।

मृत्यु हरें अकाला, शीश जाता को बढ़ाये हैं ।।

कहैं रामलाला, करो मोहि तुम निहाला अब ।

गिरिजापति कसाला, जैसे काम को जलाये हैं ।।

 

मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन ।

जारा है काम जाके शीश गंगधारा है ।।

धारा है अपार जासु , महिमा है तीनों लोक ।

भाल सौहे इन्दु , जाके सुषमा की सारा है ।।

 

सारा अहिबात सब , खायो हलाहल जानि ।

भक्तन के अधारा जाहि वेदन उचारा है ।।

चारों हैं भाग जाके द्वार हैं गिरीश कन्या ।

कहत अयोध्या सोई मालिक हमारा है ।।

 

अष्ट गुरु ज्ञानी , जाके मुख वेदबानी ।

सोहै भवन में भवानी सुख संपत्ति लहा करें ।।

मुण्डन की माला जाके चंद्रमा ललाट सोहे ।

दासन के दास जाके दारिद दहा करें ।।

 

चारों द्वार बन्दी, जेक द्वारपाल नंदी ।

कहत कवी आनन्दी, नर नाहक हा हा करें।।

जगत रिसाय, यमराज की कहा बसाय ।

शंकर सहाय, तो भयंकर कहा करें ।।

 

सवैया

 गौर शरीर में गौर विराजत।

मौर जटा सिर सोहत जाके ।।

नागन को उपवीत लसै ।

अयोध्या कहे शशि भल में ताके ।।

दान करै पल में फल चारि ।

और टारत अंक लिखे विधनाके ।।

शंकर नाम नि: शंक सदा ही ।

भरोसे रहैं निशिवासर ताके ।।

 

दोहा

मंगसर मास हेमंत ऋतु , छ्ठ दिन है शुभ बुद्ध ।

कहत अयोध्या दस तुम, शिव के विनय समुद्ध ।।

 

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