हरछठ
हरछठ पूजा ( हलषष्ठी) यह त्यौहार भादों कृष्ण पक्ष की छठ को मनाया जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इस पर्व को ललही छठ, रांधण छठ, बजराम जयन्ती, कमर छठ और हल छठ इत्यादि कई नामों से मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं व्रत रहती हैं और घर में किसी साफ-सुथरी जगह पर छठ माता की आकृति बनाकर उनकी विधि विधान पूजा करती हैं। इस पूजा में दही, चावल और महुआ का प्रयोग जरूर किया जाता है।
व्रत की पात्रता
यह व्रत पुत्र अवाम पुत्रवती दोनों महिलाएं करती है इसके अलावा गर्भवती और संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालीं महिलाएं भी इस व्रत को करती है छत्तीसगढ़ में महिलाएं बृहद रूप में इसकी पूजा करती है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश मे भी महिलाएं इस पूजा को करती हैं ।
व्रत में खाद्य पदार्थ
इस व्रत में पेड़ों के फल बिना बोया अनाज jaise pashar chawal आदि खाने का विधान है।केवल पड़िया (भैंस का बच्चा ) वाली भैंस का दूध।
पूजन का विधान
यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं (सौभाग्यवती और विधवा ) करती हैं। यह व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के हिसाब से छह छोटे मिटटी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं।
जारी (छोटी कांटेदार झाड़ी) की एक शाखा ,पलाश की एक शाखा और नारी (एक प्रकार की लता ) की एक शाखा को भूमि या किसी मिटटी भरे गमले में गाड़ कर पूजन किया जाता है। महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा (सूखे फूल) को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करतीं हैं।
उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों पर दीवार पर छट माता बना कर भी पूजा की जाती है ।
पूजा के समय इन बातों का रखें ध्यान
माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के लिए रखती हैं।
घर की दीवार पर गेरू, मिट्टी या भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाया जाता है। फिर गणेश और माता गौरा की पूजा करती हैं। पहले से तैयार किए गए ऐपन से शृंगार किया जाता है।
जमीन लीप कर घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं। वहां पर बैठकर पूजा-अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं।
इस दिन कोई अनाज नहीं खाया जाता है।
गाय का दूध और घी खाना भी वर्जित है।
केवल तालाब में पैदा हुई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
मान्यता है कि इस व्रत को रखने से भगवान हलधर पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।
हरछठ व्रत कथा
हरछठ से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी जिसका प्रसवकाल निकट आ गया था। एक तरफ वह प्रसव से व्याकुल थी तो वहीं दूसरी ओर उसका मन दूध-दही बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि अभी प्रसव हो गया तो उसका गौ-रस यानी दूध-दही यूं ही पड़ा रह जाएगा।
यही सोचकर वो दूध-दही के घड़े सिर पर रखकर उसे बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इसके बाद वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां उसने एक बच्चे को जन्म दिया।
दूध-दही बेचने के लालच में वह अपने बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी पर्व था। इस पर्व में गांव के लोग सिर्फ भैंस के दूध का इस्तेमाल करते थे। लेकिन उस महिला ने गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर गांव वालों को सारा दूध बेच दिया।
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था वहीं समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। तभी अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फाल (कांटा) बालक के शरीर में घुस गया। ये देख किसान बहुत दुखी हुआ लेकिन फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया।
उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया।
जब कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां पहुंची तो अपने बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसी के पाप की सजा है। वह मन ही मन सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध नहीं बेचा होता तो गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ होता और मेरे बच्चे की आज यह दशा न होती।
इसके बाद उस महिला ने प्रायश्चित करने की चाह से सारी बात गांव वालों को बता दी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और अपना आशीर्वाद दिया।
स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद पाकर वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो उसने देखा कि उसका बच्चा जीवित हो उठा है। तभी उसने कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।
हरछठ व्रत की दूसरी कथा (Hal Chhath Vrat Katha)
हरछठ की कथा अनुसार एक राजा थे जिन्होंने जल के लिए सागर खुदवाया, घाट बनवाये, परन्तु उसमें पानी ही नहीं आया। इससे राजा चिंतित हो गये और सोचने लगे कि अब क्या किया जाए। राजा ने गांव के पुरोहित को बुलाकर उपाय पूछा।
पंडित ने कहा राजा उपाय तो बड़ा कठिन है लेकिन अगर ये उपाय किया जाता है तो उससे पानी अवश्य आ जाएगा। राजा ने कहा आप उपाय बताएं हम अवश्य करेंगे। तब पंडित ने राजा से कहा कि अगर तुम अपने बड़े लड़के या लड़की की बलि दे दो तो जल सागर में अवश्य भर जाएगा।
ये सुनकर राजा और चिंतित हो गये। यह देखकर पंडित ने कहा हे राजन यदि तुम अपनी बहू को यह कहकर मायके भेज दो कि तुम्हारी मां की हालत बहुत खराब है जाओ उन्हें देख आओ तब ये उपाय किया जा सकता है। राजा ने ऐसा ही किया।
ये सुनकर बहू बहुत दुखी हुई और सोचने लकी कि आज हरछठ के दिन यह कौन परेशानी आ गई। वह रोती-पीटती अपनी मां को देखने दौड़ गई। जब वह मायके पहुंची, उनकी मां ने उसे इस तरह व्याकुल देखा तो वो चौंक गईं और कहने लगी,
‘अरे हमरे का भा हम तौ ठीक हन। आजु हलछठ का दिन, ख्यातन की मेंड लरिकन की महतारी का ना नांघै का चही, न ख्यात मंझावै का चही। तुम भला रोवती पीटत ख्यात मंझावत कइसे आजु चली आइउ। जरूर कउनो छलु है।
उनकी पुत्री ने कहा, अम्मा हमसे तो कहा गा ‘तुम्हार होब जाब हुइ रहा हम तुमका द्याखै सुनै आयेन। बहू की मां ने कहा, बिटिया हम तो सुना है तुम्हरे ससुर सगरा बनवाइन है वहिमा पानी नहीं आवत, कउनो का बलि दीन्ह जाई तो पानी आई। बिटिया तुम्हरेन साथे घात कीन्ह गा है तुम जल्दी लउटो।’
मां की ये बात सुनकर बहू तुरंत अपने ससुराल के लिए निकल पड़ी और रास्ते में रोती पीटती हरछठ मां की मनौती करती गई। रास्ते में उसने देखा कि जिस सागर को उनके ससुर ने बनवाया था अब वह जल से भर गया है। पुरइन पात लहरा रहे, वहीं एक बालक खेल रहा है।
वह उसी सगरा की ओर दौड़ती हुई गई देखा तो यह तो उन्हीं का पुत्र था। बहू ने अपने पुत्र को गोदी में उठा लिया और उसे चूमने लगी। हरछठ माता को मनाने लगी क्योंकि उन्हीं की कृपा से आज उनका पुत्र जीवित था। जब वह घर आई तो उसने देखा कि घर का दरवाजा बन्द है।
द्वार खुलवाया और कहने लगी,‘आजु तो सब जने हमरे लरिका का बलि चढ़ाय दीन्हेउ, हमका बहाने से मइके पठै दिह्यो। मुला आजु हमरे सत से औ हरछठ माता की दया से हमार गोदी फिर हरी भै। हमार लरिका तो वही सगरा मां खेलत रहा।’
सास ससुर अपने पोते को जीवित देख सुनकर बहुत खुश हुए और बहू के पैरों में गिरकर कहने लगे, आज तुम्हारी गोदी का बालक और हमारे कुल का दिया जगा। हरछठ माता ने जैसे हमारे दिन लौटाये वैसे ही सब का मंगल करें।
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