अक्षय तृतीया: शुभता, समृद्धि और नवआशा का पर्व
अक्षय तृतीया, जिसे अखती भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन पुण्य, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
'अक्षय तृतीया का अर्थ' है — जो कभी क्षय (नाश) न हो, और इसी कारण अक्षय तृतीया पर किया गया दान-पुण्य या खरीदारी का फल कभी समाप्त नहीं होता।
"जब आस्था अडिग हो और कर्म शुभ हो, तो जीवन में समृद्धि अनंत होती है। अक्षय तृतीया इसी विश्वास का प्रतीक है।" — चालिसा संग्रह (chalisasangrah.in)
अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व
अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व अनेक पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है:
- इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था, जो विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं। - त्रेतायुग का प्रारंभ भी इसी दिन हुआ था। - महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अक्षय पात्र प्रदान किया था।
इस दिन गंगा स्नान, दान, और अक्षय तृतीया की पूजा विधि के अनुसार पूजा करना अत्यंत पुण्यकारी होता है। विशेष रूप से स्वर्ण, अन्न, वस्त्र और जल का दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है।
आधुनिक समय में अक्षय तृतीया
आज के युग में भी अक्षय तृतीया पर क्या करें, इसका विशेष महत्व है। लोग इस दिन:
- नई संपत्ति, गहनों, वाहन या व्यवसाय की शुरुआत करते हैं - विवाह और गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य करते हैं - गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान देते हैं
यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आत्मिक समृद्धि का भी प्रतीक है।
विशेष संदेश
"धैर्य, श्रद्धा और सेवा भाव के साथ किए गए कार्य अक्षय फल देते हैं। आइए, इस अक्षय तृतीया पर हम जीवन में शुभता और सौहार्द्र के बीज बोएं।"
— चालिसा संग्रह परिवार
"अक्षय तृतीया केवल संपत्ति बढ़ाने का नहीं, बल्कि पुण्य और परोपकार बढ़ाने का भी अवसर है।"
शुभकामनाएँ
चालिसा संग्रह (chalisasangrah.in) की ओर से आप सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ईश्वर आपके जीवन में अनंत सुख, समृद्धि और शांति का संचार करें
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