गायत्री मंत्र का अर्थ

Gayatri-Mantra-ka-Arth.png

गायत्री मंत्र का अर्थ 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

 

शब्दार्थ

= ब्रह्मईश्वर को पुकारने का नाम

भूः = प्राण स्वरूप, जीवन का आधार

भुवः = दुःखनाशक, क्लेशों को हरण करने वाला

स्वः = सुख स्वरूप, शान्ति आनन्द देनेवाला

तत् = उसके

सविता = प्रकाशवान - तेजपुंज ईश्वर की शक्ति-सूर्य

वरेण्यं == श्रेष्ठ वरण करने योग्य

भर्गः = पाप नाशक, शुद्ध स्वरूप -पवित्र

देवस्य = देव तुल्य, दिव्य शक्ति

धीमहि = धारण करें

धियो = बुद्धियों को, ज्ञान तन्तुओं को

यो = जो, वह

नः = हमारी

प्रचोदयात् = प्रेरित करें -प्रेरणा दें, सत्मार्ग पर चलावें

 

भावार्थ

वह ईश्वर प्राण स्वरूप, दुख नाशक सुख देने वाला है, उसकी पाप नाशक, श्रेष्ठ प्रकाशवान, दिव्य शक्ति को हम धारण करें ( किस प्रयोजन के लिये ) कि वह हमारी बुद्धि को प्रेरित करके सत्य मार्ग पर रास्ता दिखाये।

 

जिस प्रकार अंधकार में रास्ता नहीं दिखाई देता है किन्तु दीपक का प्रकाश साथ में हो तो कोई कठिनाई नहीं होती, उसी तरह इस संसार में हम अज्ञान रूपी अन्धकार में भटक रहे हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आप अपनी दिव्य शक्ति को प्रदान कीजिये जिसको हम धारण किये रहें ताकि वह शक्ति हमको सदैव सन्मार्ग पर ले चले, हम कभी भटके नहीं और अन्त में आप तक पहुँच जाँय

{{com.CommentedByName}}

{{com.CommentMessage}}

Your Comment

सम्बन्धित पृष्ठ